मुगलकालीन इतिहास के स्त्रोत

सल्तनतकालीन की अपेक्षा मुगलकालीन इतिहास के स्त्रोत की बहुतायत है । सल्तनत काल के इतिहास लेखन की परम्परा मुगल काल के आते - आते काफी विकसित रूप धारण कर चुकी थी । इस काल में फारसी एवं भारत के विभिन्न भाषाओं में अनेक ग्रंथों की रचना हुई । जिनमें मुगलकालीन इतिहास पर काफी प्रकाश पड़ता है । मुगलकालीन में देश में अनेक यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों का आगमन हुआ । कम्पनियों के दस्तावेजों से भी काफी जानकारी प्राप्त होती है । मुगल काल में हमारे देश में अनेक विदेशी यात्रियों व्यापारियों का आगमन हुआ जिनके यात्रा विवरणों से तत्कालीन इतिहास पर काफी प्रकाश पड़ता है । मुगलकालीन पुरातत्वीय सामग्रियों से भी काफी जानकारी मिलती है , यद्यपि साहित्यिक स्त्रोतों ककी बहुलता के कारण इनका महत्व साहित्यिक स्त्रोतों की अपेक्षा कम है। 

इस प्रकार मुगलकालीन इतिहास के स्त्रोतों को मुख्यतः दो वर्गों में बाँटा जा सकता है- साहित्यिक एवं पुरातत्वीय।

साहित्यिक स्त्रोत

मुगलकालीन साहित्यिक स्त्रोतों को दो भागों में बाँटा जा सकता है - भारतीय-फारसी एवं यूरोपीय साहित्य। 

भारतीय - फारसी साहित्य 

फारसी साहित्य के अन्तर्गत सामान्य इतिहास से संबंधित ग्रंथ , जीवन - वृतांत , सरकारी और गैर - सरकारी ऐतिहासिक ग्रन्थों , आत्मकथाओं एवं प्रशासकीय दस्तावेजों , सरकारी पत्रों आदि को रखा जा सकता है । कतिपय मुगल - सम्राटों ने अपनी जीवनियाँ एवं संस्मरण भी लिखी हैं , जिनमें तत्कालीन इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है । इस कोटि ने सबसे महत्वपूर्ण बाबर रचित तुजुक - ए - बाबरी अथवा बाबरनामा है । यह ग्रंथ मूल रूप में तुर्की में था जिसका अनुवाद फारसी में कया गया । इस ग्रंथ में बाबर ने भारत की राजनीतिक तथा प्राकृतिक स्थति एवं सामाजिक , आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन पर अपने विचार व्यक्ति किये हैं । इसी प्रकार हुमायूँ की बहने गुलबदन बेगम ने हुमायूँ की बहन गुलबदन बेगम ने हुमायूँ की जीवन - गाथा हुमायूँनामा की रचना की जिनसे हुमायूँ के कार्यकापों के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है । जहाँगीर ने भी आत्मकथा तुज़ुक - ए - जहाँगीरी लिखी है । मुगल - काल के कई प्रख्यात विद्वानों ने महत्वपूर्ण ऐतिहासिक ग्रंथों की रचना की । इनमें प्रमुख हैं - निजामुद्दीन अहमद लिखित तबकात - ए - अकबरी , बदायूँनी रचित मुन्ताखाब - उल - तवारीख , फरिश्ता लिखित गुलान - ए - इब्राहिमी तथा मुन्तख - उल - लुवाब जिसका लेखक सफी खाँ था । निजामुद्दीन ने अपने ग्रंथ में अकबर के काल की कई महत्वपूर्ण घटनाओं एवं प्रशासकीय व्यवस्था पर काफी प्रकाश डाला है । उसी प्रकार बदायूँनी की रचन भी अकबरकालीन इतिहास की जानकारी का एक प्रमुख स्त्रोत है । 

बदायूँनी की रचना में महमूद गजनी के आक्रमण से लेकर अकबर के 40 वर्षों के शासनकाल तक का विवरण दिया गया है । इसमें अकबर की प्रशासनिक एवं धार्मिक नीतियों पर काफी प्रकाश डाला गया है । फरिश्ता की रचना भी एक इतिहास की तरह है और उसमें मुगल सम्राटों और दक्षिण रियासतों के सम्बन्धों का प्रभावशाली ढंग से वर्णन किया गया है । इसी प्रकार सफी खाँ ने -अपनी रचना में औरंगजेब और मराठों के संघर्ष की विशद व्याख्या की है। 

मुगलकाल में दरबारी विद्वानों द्वारा दरबारी इतिहास - लेखन की परम्परा अकबर के काल के प्रारम्भ हुई । अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुलफजल ने अकबरनामा लिखा जिसमें -अकबर के काल की महत्वपूर्ण घटनाओं का विवरण दिया गया है । अबुलफजल की दूसरी महत्वपूर्ण रचना आइन - ए - अकबरी है , जिससे अकबर के प्रशासन पर महत्वपूर्ण प्रकाश पड़ता है । अबुलफजल की रचना से प्रेरित होकर मुगलकालीन दरबारी विद्वानों ने अनेक ऐतिहासिक ग्रंथों की रचना हुई । अब्बास खाँ शेरवानी ने तारीख - ए - शेरशाही की रचना की जो शेरशाह के शासनकाल का एकमात्र विश्वसनीय ग्रन्थ है । अकबर द्वारा दरबारी - इतिहास लेखन की परम्परा को जहाँगीर एवं शाहजहाँ ने आगे बढ़ाया । मोतमिद खाँ ने इकबालनामा - ए - जहाँगीरी और अब्दुल हमीद लाहौरी ने पादशाहनामा की रचना की । औरंगजेब के शासनकाल में इसी परम्परा में आलमगीरनाम की रचना मिर्जा मुहम्मद काजिम ने की परन्तु अपने शासन के 11 वें वर्ष में औरंगजेब ने इतिहास - लेखन पर प्रतिबन्ध लगा दिया। 

इतिहासकारों ने दरबारी इतिहास की आलोचना करते हुए उस पर पक्षपातपूर्ण विवरण है और सत्य को छुपाने का आरोप लगाया है किन्तु अधिकांश विद्वानों के मतानुसार इन ग्रन्थों में वर्णित घटनाओं की सत्यता विश्वसनीय है , क्योंकि सभी इतिहासकार समकालीन और दरबारी थे । इन महत्वपूर्ण ग्रन्थों के अतिरिक्त मुगलकालीन में फारसी भाषा में अन्य ग्रन्थ- मुआसिर - ए - जहाँगीरी , तारीख - ए - फरिश्ता , शाहजहाँनामा , फतहत - ए - आलमगीरी आदि है जिनमें मुगलकालीन इतिहास के अनेक पहलुओं पर प्रकाश पड़ता है। 

क्षेत्रीय ग्रन्थ 

मुगलकाल में क्षेत्रीय अथवा प्रान्तीय इतिहास पर भी अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथ गुजरात पर अलीमुहम्मद खाँ लिखित मिरात - ए - अहमद , गुलाम हुसेन रचित रियाज उस सालाती बंगाल का इतिहास और खिताब खाँ रचित बदरिस्तान - ए - गेवी आदि हैं । मुस्लिम इतिहासका के अतिरिक्त इस काल के अनेक इतिहासकार भी हुए जो फारसी के अच्छे ज्ञाता थे तथा जिन्होंने मुगल सम्राटों से संबंधित अनेक ग्रन्थों की रचना की। 

अन्य ग्रंथ 

फारसी के अतिरिक्त , उर्दू , हिंदी , संस्कृत एवं अन्यान्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी मुगलकाल में अनेक ग्रन्थों की रचना हुई । ये ग्रन्थ तत्कालीन सांस्कृति स्थिति की जानकारी के एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है । 

यूरोपीय साहित्य 

मुगलकालीन इतिहास की जानकारी का एक अन्य महत्वपूर्ण स्त्रोत यूरोपीय साहित्य है । जो दो प्रकार के हैं - यूरोपीय यात्रियों एवं व्यापारियों के यात्रा विवरण तथा यूरोपीय साहित्य हैं जो दो प्रकार के हैं यूरोपीय यात्रियों एवं व्यापारियों के यात्रा विवरण तथा यूरोपीय कम्पनियों के दस्तावेज । उस काल में यूरोप के विभिन्न देशों से भारत आने वाले यूरो पीय यात्रियों रैवर्नियर , बर्नियर , डच यात्री मौंसरेट और और पेलार्ट , पुर्तगाली यात्री डीकास्टो , इटालियन मनूची और रूसी यात्री निकितन इत्यादि । इन यात्रियों ने अपने यात्रा विवरण में तत्कालीन भारत की राजनीतिक , सामाजिक , आर्थिक , प्रशासनिक एवं सांस्कृतिक स्थिति का सच्चा चित्रण किया है । जेसुईट पादरियों ने भी अपने वृत्तांतों में मुगलकाल के सम्बन्ध में काफी कुछ लिखा है । इसी प्रकार डच , पुर्तगाली , अंग्रेज और फ्रांसीसी कम्पनियों के दस्तावेजों से भी तत्कालीन राजनीतिक , आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति के सम्बन्ध में काफी जानकारी प्राप्त होती है। 

पुरातत्वीय स्त्रोत 

साहित्यिक स्त्रोतों के अतिरिक्त पुरातत्वीय स्त्रोतों से भी मुगलकालीन इतिहास पर काफी प्रकाश पड़ता है । मुगलकालीन अभिलेखों , सिक्कों एवं भवनों से उसके काल की अनेक बातों विशेष कर कला - कौशल की प्रगति के सम्बन्ध में प्रमाणिक जानकारी प्राप्त होती है । मुगलकाल के किलों जैसे आगरे की प्रगति के सम्बन्ध में प्रमाणिक जानकारी प्राप्त होती है । मुगलकाल के किलों जैसे आगरे का किला और दिल्ली का लाल किला , प्रख्यात भव्य भवनों जैसे फतेहपुर सिकरी , जामा मस्जिद , ताजमहल आदि से मुगल शासकों की कलात्मक अभिरुचि , स्थापत्य कला एंव मुगल साम्राज्य की आर्थिक सम्पन्नता का पता चलता है । 

निष्कर्ष (Conclusion) : उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के लिए स्त्रोतों का अभाव नहीं है । विभिन्न साहित्यिक एवं पुरातात्विक स्त्रोतों से भारतीय इतिहास पर व्यापक प्रकश पड़ता है । अतः आवश्यकता इस बात की है कि अपनी बुद्धि का प्रयोग करके इतिहासकार उपलब्ध व्यापक सामग्री में से अतिरंजित एवं शब्दजालयुक्त विवरण को त्यागकर , वास्तविक तथ्यों को ढूंढकर उनके आधार पर ही इतिहास का सृजन करें । यद्यपि विभिन्न स्थानों , विभिन्न युगों में विविध सम्बधों का प्रचलन , तिथियों का ज्ञान न होना , आदि अनेक समस्याएं रास्ते में आती हैं किन्तु इन समस्याओं का अतिक्रमण करके प्राचीन भारत के क्रमिक व वैज्ञानिक इतिहास का निर्माण करना असम्भव कार्य नहीं है। 

इस प्रकार उपरोक्त विवरण से अनेक इतिहासकारों की यह धारणा कि प्राचीन भारतीयों में ऐतिहासिक मेधा ( Historical Sense ) का अभाव था , भ्रमक प्रमाणित हो जाती है ।

मुगलकालीन इतिहास के स्त्रोत मुगलकालीन इतिहास के स्त्रोत Reviewed by Rajeev on जनवरी 27, 2023 Rating: 5

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