तृतीय विश्व के उत्थान का अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों पर प्रभाव

तृतीय विश्व के उत्थान का अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों पर प्रभाव

एशिया, अफ्रीका एवं लैटिन अमेरिका में उपनिवेशवाद की समाप्ति के उपरान्त तृतीय- विश्व के उत्थान ने अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को व्यापक रूप से प्रभावित किया। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में यूरोपीय आधिपत्य की समाप्ति हो गई तथा तृतीय विश्व के देशों की विश्व राजनीति में सक्रिय भूमिका प्रारम्भ हो गई। तृतीय विश्व के उत्थान के अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों पर निम्नलिखित प्रभाव दृष्टिगोचर होते हैं-

(1) साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद की समाप्ति (Fall of Imperialism and Colonialism ) — एशिया, अफ्रीका व लैटिन अमेरिका के स्वतन्त्रता आन्दोलनों के परिणामस्वरूप साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद की भारी क्षति हुई। ये राष्ट्र सयुक्त राष्ट्र मंच पर भी साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद को निन्दनीय घोषित कराने में सफल रहे।

(2) प्रभुसत्ता सम्पन्न राष्ट्र राज्यों की संख्या में वृद्धि (Increase in the Sovereign Nation State) उपनिवेशवाद की समाप्ति के परिणामस्वरूप एक बड़ी संख्या में 'प्रभुसत्ता सम्पन्न राज्य अस्तित्व में आये। सन् 1945 ई० में प्रभुसत्ता सम्पन्न राष्ट्र राज्यों की संख्या मात्र 50 थी जो 1980 ई० तक बढ़कर 160 हो गई। परिणामस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धी का स्वरूप भी परिवर्तित होकर जटिल हो गया।

(3) संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका में परिवर्तन (Change in the role of U.N.O.) — प्रभुसत्ता सम्पन्न राष्ट्र राज्यों की संख्या में वृद्धि होने के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्य संख्या में भी परिवर्तन आया। प्रारम्भ में संघ की सदस्य संख्या 51 थी जो बढ़कर 193 हो गई। इस वृद्धि के कारण कार्यभार में वृद्धि हो गई तथा कार्य-प्रणाली में भी अन्तर आया। महासभा में नये राज्यों का प्रवेश हो गया जबकि सुरक्षा परिषद् में पाँच स्थायी सदस्यों की प्रधानता अभी भी स्थापित थी। परिणामस्वरूप कार्य करना कठिन हो गया।

(4) अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में जटिलता (Complexity in International Relations) – सम्प्रभु राज्यों की संख्या में वृद्धि होने से अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध जटिल एवं समस्यात्मक हो गये। नाम (NAM), अफ्रीकी-एशियाई आन्दोलन तथा तृतीय विश्व आन्दोलन ने अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में नई परिस्थितियों को जन्म दिया। इसके साथ ही NIEO समस्या, विकसित व अविकसित देशों के मध्य सम्बन्ध, राष्ट्रवाद, आर्थिक अन्तर्राष्ट्रवाद एवं क्षेत्रीयवाद के प्रादुर्भाव आदि ने नये विरोधों एवं विवादों को जन्म दिया।

(5) विश्व शान्ति का आदर्श (Ideal of World Peace ) - नये राज्यों के द्वारा 'विश्व शान्ति' के आदर्श के प्रति अपनी वचनबद्धता व्यक्त की गई क्योंकि सामाजिक एवं आर्थिक पुनर्निर्माण तथा विकास कार्यों के लिये वे इसे आवश्यक मानते थे। नवोदित राष्ट्र किसी भी प्रकार के अन्तर्राष्ट्रीय विवाद में रुचि नहीं रखे थे। इन राष्ट्रों द्वारा 'गुटनिरपेक्षता' एवं 'पंचशील' के सिद्धान्तों को अपनी विदेश नीति के मूल सिद्धान्तों के रूप में अपनाया गया।

(6) आर्थिक सम्बन्धों के महत्व में वृद्धि (Increase in the Importance Economic Relations) — वर्तमान में अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में आर्थिक पहलू ही राजनीतिक आयामों को प्रशासित करता है। नवोदित राष्ट्र अपने आर्थिक विकास के लिये विकसित राष्ट्रो पर निर्भर है जिसके कारण ये आर्थिक शोषण का शिकार हो जाते हैं। इस शोषण से मुक्ति हेतु नवोदित राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था की पुनर्संरचना चाहते हैं। इस हेतु ये राष्ट्र विश्व की आय के साधनों का समान विभाजन चाहते हैं। अधिक सार्थक तथा न्यायपूर्ण आर्थिक सहयोग के लिये ये राष्ट्र NIEO का समर्थन करते हैं।

(7) परमाणु निशस्त्रीकरण की माँग (Demand of Nuclear Disarmament) - एशिया, अफ्रीका व लैटिन अमेरिका के द्वारा अमेरिका के परमाणु शस्त्रों पर एकाधिकार को भी चुनौती प्रदान की गई है। ये राष्ट्र विश्व में पूर्ण निःशस्त्रीकरण का समर्थन कर रहे हैं।

(8) गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का प्रादुर्भाव (Emergence of Non-aigned Movement-NAM)—एशिया व अफ्रीका के नवोदित राष्ट्रों ने शीत युद्ध से बचने के उद्देश्य से गुट निरपेक्षता की नीति को अपनाया। बाद में लैटिन अमेरिका राष्ट्र भी इसमें सम्मिलित हो गये। आपसी सहयोग व एकता की दृष्टि से 1961 ई० में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन प्रारम्भ किया गया। कुछ ही समय में NAM विश्वव्यापी आन्दोलन बन गया।

स्पष्ट है कि एशिया, अफ्रीका व लैटिन अमेरिका में उपनिवेशवाद की समाप्ति से अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया है। इन देशों का पुनरुत्थान तृतीय विश्व के पुनरुत्थान का प्रतीक था। वर्तमान में ये तृतीय विश्व के देश विश्व-राजनीति में अपनी स्वतन्त्र एवं महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का सार्थक प्रयास कर रहे हैं।

तृतीय विश्व के उत्थान का अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों पर प्रभाव तृतीय विश्व के उत्थान का अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों पर प्रभाव Reviewed by Rajeev on फ़रवरी 05, 2023 Rating: 5

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