हालांकि मौयों द्वारा निर्मित भवनों के अवशेष उपलब्ध नहीं हैं । लेकिन मौर्य शासन काल की कई विशेषताओं का उल्लेख युनानी इतिहासकार मेगास्थनीज ने अपनी पुस्तक इंडिका में किया है । मौर्यकालीन राजधानी पाटलिपुत्र शहर के वैभव के बारे में भी उल्लेख किया गया है । चन्द्रगुप्त के पौत्र अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाया और कला • तथा प्राचीन सभ्यता - संस्कृति के विकास के लिए बौद्ध गतिविधियों का विस्तार किया । 400 ई . के आस - पास जब चीनी यात्री फाह्यान भारत आया तब उसने चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा निर्मित महल को देखा । उसने इस महल का उल्लेख बहुत ही सजीव रूप में प्रस्तुत किया है।
स्तम्भ - अशोक ने अपने शासनकाल में अनेक स्तम्भों का निर्माण कराया । उसने • इन स्तम्भों को बौद्ध धर्म , संस्कृति एवं सभ्यता के प्रचार - प्रसार के साथ अन्य महत्वपूर्ण कार्यों के प्रतीक के रूप में लगवाया था । इन स्तम्भों के माध्यम से उसने बौद्ध धर्म का प्रचार - प्रसार किया । स्तम्भों में पुष्पदल , घंटी जैसी आकृतियां के साथ - साथ पशु भी चित्रित हुआ करते थे । पशुओं में सिंह , बैल , हाथी प्रमुख होते थे । रामपुरवा से प्राप्त वृषभ स्तम्भ जो नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा गया है , में वृषभ को सिंधुकालीन वृषभ के रूप में दिखाया गया है । सारनाथ में सिंह स्तम्भ का निर्माण अशोक ने करवाया जहाँ बैल , घोड़ा , सिंह और हाथी क्रमवार अंकित थे । इस स्तम्भ के बीच में एक चक्र है जो वाहन का प्रतीक है । यह चक्र धर्मचक्र प्रवर्त्तन ( बुद्ध का प्रथम उपदेश ) से संबंधित है।
पाषाण निर्मित वास्तुकला - मौर्यकालीन कला के अन्तर्गत गया के निकट बराबर और नागार्जुनी पहाड़ियों में पत्थर निर्मित वास्तुकला की अनेक श्रृंखलाएँ परिलक्षित । यहाँ पर पहाड़ों को काट कर निर्मित गुफाएँ आजीवक संप्रदाय के संतों को अशोक और दशरथ द्वारा प्रदान किया गया था । पुरातात्विक दृष्टिकोण से ये गुफाएँ पाषाण निर्मित वास्तुकला शैली का प्रारंभिक उदाहरण हैं । भारत में पत्थर काट कर जो गुफाएँ बनीं वे अशोक ( 232-273 ई.पू. ) और उसके पौत्र दशरथ के समय निर्मित की गई थी । लेकिन इस वास्तुकला का वास्तविक विकास अशोक ने ही किया था।
प्रसिद्ध स्तूप - अशोक के शासन काल के पहले भी भारत में स्तूप ज्ञात थीं । मूल रूप से वैदिक आर्यों ने ईंटों और साधारण मिट्टी से उनका निर्माण किया था । अशोक कालीन स्तूपों के निर्माण के अन्तर्गत बुद्ध के शरीर को ध्यान में रख कर स्मृति चिन्हों का निर्माण किया गया और यही स्तूप पूजा के साधन बने । बौद्ध कला और धर्म में स्तूप को भगवान बुद्ध के स्मृति चिन्ह् के रूप में स्वीकार किया गया है । स्तूप अंदर से कच्ची ईंटों से तथा बाहरी हिस्सा पक्की ईंटों से निर्मित किये गए । फिर उनमें हल्का प्लास्टर चढ़ाया गया । स्तूप के ऊपर से पत्थर की छतरी भी लगाई गई।
मानव आकृतियाँ - मौर्य कालीन निर्मित मानवीय आकृतियों के अन्तर्गत अनेक पत्थरों की कला-कृतियां पाई गई हैं , जैसे- चौरी महिला की संरक्षित प्रतिमूर्ति जो पटना संग्रहालय में रखी हुई है । यह मूर्ति दीदारगंज के लोगों को मिली थी । उसमें प्रयुक्त पॉलिश और कलाकृतियां मौर्य कालीन हैं । इस मूर्ति के शरीर में वस्त्र , कानों , बाहों और गले में आभूषण हैं।

कोई टिप्पणी नहीं: