संविधान की कतिपय सामान्य विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं-
( 1 ) संविधानवाद संस्कृति से सम्बद्ध अवधारणा है - राजनीतिक समाज के मूल्य समाज की संस्कृति से सम्बद्ध होते हैं । प्रत्येक देश के आदर्श , मूल्य और विचारधाराएँ उस देश की संस्कृति से उत्पन्न होते हैं और वहीं की संस्कृति से जुड़े रहते हैं । संविधानवाद इन्हीं पर आधारित होता है । इस प्रकार संविधानवाद की धारणा समय तथा स्थान विशेष की संस्कृति से सम्बद्ध पाई जाती है । विशाल राजनीतिक समाज में संस्कृतियों की विविधता और भिन्नता पाई जाती हैं । संविधानवाद उनके संघर्ष तथा विरोध को दूर कर उनके स्थान पर समस्त संस्कृतियों से सम्बद्ध होता है।
( 2 ) संविधानवाद मूल्य-सम्बद्ध अवधारणा है - संविधानवाद संवैधानिक दर्शन , राजनीतिक समाज को अभिजनों ( elites ) द्वारा प्रदान किया जाता है । संविधानवाद के मूल्यों पर देश की परम्पराओं , परिस्थितियों , आवश्यकताओं और समस्याओं का प्रभाव पड़ता है । मूल्यों पर वातावरण की छाप होती है । इस प्रकार संविधानवाद अनेक स्रोतों से निर्मित मूल्य से युक्त धारणा है । यह मूल्य समाज को प्रिय लगते हैं । इनकी रक्षा , प्राप्ति और आवश्यक प्रगति के लिए समाज बड़े से बड़ा बलिदान करने के लिए उद्यत रहता है । इन गुणों से युक्त धारणा संविधानवाद कहलाती है।
( 3 ) संविधानवाद गत्यात्मक अवधारणा है - संविधानवाद में स्थायित्व के साथ ही साथ गत्यात्मकता भी पायी जाती है । अतः संविधानवाद प्रगति में बाधक नहीं , वरन् प्रगति का साधक बना रहता है । विकास के लिए स्थायित्व आवश्यक है , वरना विकास की दिशाओं में क्रम नहीं रहेगा । संविधान का गतिशील होना भी आवश्यक है क्योंकि समय में परिवर्तन होने के साथ - साथ मूल्यों में परिवर्तन आता है तथा संस्कृति का विकास होता है । इसी में संविधानवाद गत्यात्मकता प्राप्त करता है।
( 4 ) संविधानवाद प्रधानतः साध्य मूलक अवधारणा है - संविधानवाद मुख्यतः साध्यों से सम्बन्धित विचार है परन्तु साध्य मूलक विचार में पूर्णतया साधनों की अवहेलना नहीं की जा सकती।
( 5 ) संविधानवाद समभागी अवधारणा है - चूँकि एक से अधिक राष्ट्रों के मूल्य , विश्वास एवं राजनैतिक आदर्श व संस्कृति में समानता हो सकती है , अतएव अनेक देश के राजनीतिक आदर्श , आस्थाएँ और मान्यताएँ समान हो सकती हैं । इन देशों में संविधानवाद में आधारभूत समानताएँ होती हैं । उदाहरण के लिए पाश्चात्य संस्कृति वाले देशों में संविधानवाद में समानता पाई जाती है । ऐसी समानता में यदि अन्तर होता भी है तब वह प्रकार का नहीं वरन् मात्रा का अन्तर होता है । इस प्रकार , प्रत्येक देश का अलग - अलग मौलिक संविधानवाद नहीं होता है।
( 6 ) संविधानवाद सामान्यतया संविधानजन्य अवधारणा है - सामान्यतया हर देश की मूलभूत आस्थाओं का उस देश के संविधान में ही उल्लेख होता है पर कई बार संविधानवाद के आदर्शों का प्रतिबिम्ब संविधान में नहीं मिलता है अर्थात् संविधान व संविधानवाद में साम्य नहीं होता है।

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