नई दिल्ली से बीजिंग के बीच शुरू हुई चीनी विमानसेवा , एशिया के इन दो प्राचीन देशों के रिश्ता में एक नई ऐतिहासिक शुरूआत का संकेत देती है । बाजपेयीद सरकार के कार्यकाल में हुई इस पहल का एक ऐतिहासिक महत्व भी है । 1978 में जनता सरकार के विदेश मंत्री के रूप में वाजपेयी चीन के दौरे पर गए थे । दोनों देशों के बीच ठंड हो चुके रिश्तों में गरमाहट लाने की गरज से गए वाजपेयी को नियम समय से पहले ही लौट पड़ा । तब अपने पड़ोसी छोटे देश वियतनाम पर चीन ने आक्रमण कर दिया था । जिसका वाजपेयी ने विरोध किया । पिछले चालीस सालों से दोनों के बीच बेहतर संबंधों के लिए किए जा रहें प्रयासों को पहली सफलता जब मिली है । दिल्ली से बीजिंग के लिए रवाना हुए पहले विमान में विदेश मंत्री भारतीय प्रतिनिधिमंडल साथ ले जाना युक्तिसंगत है , क्योंकि यह महज नागरिक उड्डयन का अवसर नहीं था।
भारत - चीन वार्ता में एक निश्चित अवधि के भीतर दोनों देशों की वास्तविक नियंत्रण रेखा तय करने के निर्णय से स्पष्ट है कि दोनों के बीच संबंधों में नए आयाम जुड़ रहे है । पिछले चार सालों में वाजपेयी सरकार एक ऐसा महौल बनाने में लगी थी , जिसके कारण अपने विगत को भुलकर दोनों देश एक नए बेहतर संबंध के लिए आमने - सामने आ सकें । कारगिल संकट के दौरान यह बिल्कुल स्पष्ट हो गया जब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के चीन दौरे के बावजूद चीन ने पाकिस्तान की पक्षदारी से इनकार कर दिया था । बीजिंग - इस्लामाबाद के पिछले चालीस सालों के बेहतर संबंधों के बावजूद माओ के उत्तराधिकारियों ने भारत - पाकिस्तानी संबंधी पर मध्यम मार्ग अपनाया , जिससे बीजिंग की विचारधारा में बदलाव का स्पष्ट संकेत मिला । बाजपेयी के करिमाई नेतृत्व में जनवंत सिंह द्वारा किए गए प्रयासों का अच्छा परिणाम निकला है । बीते शीतकाल में चीनी प्रधानमंत्री झू रोंगजी का भारत दौरा इसका संकेत है । यह झू के साथ आए प्रतिनिधिमंडल में 40 चीनी उद्यमी भी थे । बंगलौर में उन्होंने सफ्टिवेअर के क्षेत्र में भारतीयों के अग्रणी होने की तारीफ करते हुए सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत - चीन सहभागिता की पेशकश की , जिससे दोनों की आर्थिक शक्ति बढ़ सके।
सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार हार्डवेअर के क्षेत्र में आग्रणी चीन की हुबेई सहित कई कंपनि पिछले तीन सालों में भारत आई हैं । चीन के सॉफ्टवेअर इंजीनियर चीनी कंपनियों के लिए दीर्घकालिक व्यावसायिक संबंध स्थापित किया है । इस साझीदारी में इलेक्ट्रानिक उपकरणों भारत में काम कर रहे हैं । अपने चीन साझीदारों के साथ भारतीय इलेक्ट्रानिक कंपनियों पुर्जो की डिजाइनिंग और निर्माण का काम चीन में होना है , जबकि उन खण्डों को भारत में जोड़कर आखिरी शक्ल दिए जाने का प्रावधान है । इससे परिणाम निषेध प्रावधान ( आर . ) हटाए जाने के बाद चीनी सामानों से भारतीय बाजार के पट जाने की आशंका निर्मला साबित हुई है । बीजिंग - इस्लामाबाद धुरी को बाजपेयी सरकार ने तगड़ा झटका दिया है।
शीत युद्ध के बाद की परिस्थितियों में इस धुरी का कोई औधित्य नहीं रह गया था , खासकर चीन के लिए । भारत के लिए अपने सबसे बड़े पड़ोसी चीन के साथ स्थिर संबंध बनाने का अच्छा अवसर था , जिसके लिए चीन भी लालयित था । बीजिंग यह सकारात्मक रवैया समझ था और भारत के और अधिक नजदीक आने के लिहाज से अपने हर कदम पर ऐतिहायान करत रहा था । इसका एक प्रमुख कारण यह है कि जब चीन ने कम्युनिष्ट आन्दोलन नियांत करना बंद कर दिया था । उसका रूझान अब आर्थिक क्षेत्र की ओर अधिक था । विश्व व्यापार संगठन में जिस तरह चीन ने अपना रूख सख्ती से रखा वह अर्थव्यवस्था को नियंत्रण रखने का एक अनुपम उदाहरण है । यह हमारे देश के कम्युनिस्टों के लिए भी एक नसीहत 44 , 35,000 करोड़ रुपये की अर्थव्यवस्था ( भारतीय अर्थव्यवस्था -21 , 25 , 000 करोड रुपये ) के साथ चीनी की वृद्धिदर 8 से 9 प्रतिशत 7,00,000 करोड़ रुपये से अधिक का निर्यात करने वाले चीन का घरेलू बाजार विशाल है।
भारत के 22 , 500 रुपये प्रति व्यक्ति आय की तुलना में चीन में यह 50,000 रुपये यानि भारत के मुकाबले 2.5 गुणा अधिक है । इन्ही कारणों से कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ चीन में पूँपी निवेश के लिए आकृष्ट हुई है । माओ की मृत्यु के बाद चीनी कम्युनिपष्ट पार्टी के अधीन दिवंगत डेंग जियाओं पिंग के नेतृत्व में चीन के आर्थिक नीतियों में क्रांतिकारी बदलाव आया , जिसमें निजी उद्यमों व अर्थव्यवस्था में आधुनिकीकरण एवं प्रतियोगिता को बढ़ावा दिया गया । अच्छे लाभों के लिए विशेष क्षेत्रों का प्रयोग कर चीनी नेतृत्व ने हांगकाग का अनुकरण किया , जिसके कारण 225,000 करोड़ रुपये की वार्षिक आमदनी । चीन में निर्माण के हर क्षेत्र में श्रम की उत्पादकता भारत के मुकाबले 28 से 210 प्रतिशत अधिक है ।
वर्ष 2000 के अंत तक चीन के पास विदेशी मुद्रा भंडार 8 , 25,000 करोड़ रुपये है जबकि हमारे यहाँ यह 2,13,500 करोड़ रुपये है । तब से लेकर अब तक चीन ने आर्थिक उदारीकरण के क्षेत्र में पीछे मुड़कर नहीं दिखा । चीन प्रतिवर्ष करीब 350 लाख टेलीफोन सेवाओं का संचार नेटवर्क स्थापित कर रहा है जो हम पिछले 15 सलों में कर सके । एशियाई क्षेत्र में बढ़ते आतंकवाद से भारत व चीन सहित अन्य एशियाई देश का गंभीर खतरा है । इस पर काबू पाने के लिए सबबे एकजुट होकर आतंकवाद पर प्रहार करना । चाहिए , जिसमें अमेरिका की सहभागिता भी सुनिश्चित की जानी चाहिए । सुरक्षा इस नई नीति में भारत व चीन को धुरी बनाना चाहिए , तभी इन देशों की भी सीमाएँ सुरक्षित रह सकेंगी ।
चीन ने कम्पयनज्म से मोह भंग कर आर्थिक सुधारों की ओर अग्रसर है , हालांकि हमारे मार्क्सवादी मित्र चीन के इस बदलाव पर अपनी आँखें मूंदे बैठे है । इस नए सुरक्षा समीरकण से एशिया के इन तीन बड़े देशों की छत्रछाया में मध्य एशिया व दक्षिण एशिया के देश सुरक्षित महसूस कर सकते हैं । इस मित्रवत माहौल के लिए सीमा विवादों को ' दो और लो' की नीति अपना कर सलटा लेना चाहिए । सीमा विवाद खत्म करने के लिए जसवंत सिंह द्वारा प्रयासों को वाजपेयी के संभावित दिसम्बर से बीजिंग दौर में अधिक सकरात्मक कर मिलने की उम्मीद है । जिससे शीतयुद्ध और तालिवान के खात्मे के बाद भारत - चीन चों को एक नया आयाम मिल सकेगा । चीनी इस दौरे में रक्षामंत्री जार्ज फर्नाडीज को भी विचारविमर्श में साथ रखने के इच्छुक है , जो तिब्बती मसले पर अधिक मुखर है । रक्षामंत्री भारत के उत्तर - पूर्वी प्रांतों के सशस्त्र आदिवासियों लड़ाकुओं को चौनी अस्त्र - शस्त्र देने का भी मुद्दा उठाएंगे , जिसके कारण हमारी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचा रहा है । यहाँ यह खुलासा कर देना बेहतर होगा कि उत्तर - पूर्व के सशस्त्र आदिवासी विद्रोही केवल चीनी सहायता पर निर्भर नहीं है।
हमारे उत्तर - पूर्व में युगों से उत्तरी , बर्मा , बांग्लादेश की पहाड़ियों और दक्षिणी थाइलैंड में सशस्त्र आदिवासी विद्रोह होते आए है । बंगाल की खाड़ी के रास्ते इन्हें साजी - सामान मिलता रहा है । ये विद्रोह एक - दूसरे से जुड़े हुए है , इन पर तब तक काबू नहीं पाया जा सकता जब तक कि शस्त्री की आपूर्ति रोक न दी जाए । ये आंदोलन नहीं संबंधित देश के लिए खतरा है , वहीं यह भी सत्य है कि इन देशों ने अपने मतलब के लिए दूसरे देशों में हो रहे ऐसे विद्रोहों को प्रश्रय देने से गुरेज नहीं गया है । बंगाल की खाड़ी में अपने प्रभुत्व के कारण भारत के ऊपर गैर कानूनी हथियारों को रोकने की भारी जिम्मेदारी है । भारत और चीन के इस विशाल भू - भाग में विश्व की एक तिहाई आबादी रहती है । तिहासिक काल में दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक व वाणिज्यिक संबंध रहा है । औपनिवेशिक काल के ठीक बाद भारत व चीन ने दुनिया को अपनी ओर आकृष्ट किया और सांस्कृतिक व आर्थिक संबंध बनाए । बौद्ध धर्म ने दोनों के बीच सेतु का काम किया है । इस नए रिश्ते से पुरानी स्थिति फिर से लौट सकेगी और आतंकवाद के खात्मे के साथ - सथ सुदृढ अर्थव्यवस्था का सपना भी साकार हो सकेगा।

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