राजनीतिक विज्ञान: लोकहितकारी राज्य

एक लोकहितकारी राज्य वह राज्य होता है जो अपने नागरिकों को अधिकतम सुविधायें दें । केन्द्र इस प्रकार जनता में सुव्यवस्था और पारस्परिक व्यवहारों को अधिक विकसित रूप से देखना चाहता है । निःसन्देह आज के जीवन के पोर - पोर में समाविष्ट हो गया है । उसकी प्रत्येक वस्तु को राज्य व्यवस्थित करने का अधिकार रखता है । चाहे मिल मालिक हो , चाहे मजदूर , चाहे घरेलू उत्पादक हो या उपभोक्ता , प्रत्येक मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं का राज्य ही नियन्ता है । उपभोग , उत्पत्ति , विनिमय और वितरण - इन सभी आर्थिक क्रियाओं में राज्य की प्रधानतो है । ऐसा प्रतीत होने लगा है कि मानव की राजनीतिक क्रियाओं ने अपने को उसकी विस्तृत आर्थिक पृथ्वी पर फैलाकर उसे ढक लिया है । इसी रूप को देखकर हाब्सन का कथन है कि , " राज्य ने अपने कन्धों पर डाक्टर , स्कूल , मास्टर , व्यापारी , उत्पादन , बीमा कम्पनी के एजेन्ट , मकान बनाने , नहर की योजनायें बनाने , रेलवे नियन्त्रण तथा और बहुत से कार्य ले लिये हैं। " 

लोकहितकारी राज्य का वास्तविक रूप - परन्तु राज्य के विस्तृत हस्तक्षेप का क्या तात्पर्य है ? इसका तात्पर्य यह नहीं है कि राज्य ने मनुष्य जीवन के सारे कार्यों को नियन्त्रित कर उसे अपंग कर दिया है बल्कि इसका केवल इतना तात्पर्य है कि आधुनिक युग में राज्य नामक संस्था जनता से कोई पूर्णतया पृथक वस्तु नहीं है , बल्कि उसकी शक्तियाँ जनता में ही निवास करती हैं और राज्य मानव की सभी क्रियाओं के उत्तरदायित्व को वहीं तक लेता है जहाँ तक वह उसको पूर्ण कर सकता है । दूसरी बात जो प्रधान रूप से राज्य की क्रियाओं में आधार - रूप में कार्य करती है वह है लोकहित राज्य अपनी क्रियाओं को केवल उसी सीमा तक मानव जीवन की गहराइयों तक ले जा सकता है जहाँ तक लोक कल्याण होता है और उसमें राष्ट्रीय हानि कम और लाभ अधिक होता हो। 

लोकहितकारी राज्य द्वारा किये जाने वाले कर्त्तव्य

आधुनिक युग में एक लोकहितकारी राज्य को निम्नलिखित कर्त्तव्य करने पड़ते हैं- 

( 1 ) श्रमिकों का कल्याण - लोक हितकारी राज्य की ओर से मजदूरों के काम करने के घण्टे , उनका निश्चित वेतन , उनके निवास स्थान का प्रबन्ध आदि किये जाते हैं । असहाय अवस्था में उनकी सुविधाओं के लिये कानून बना दिये गये हैं। 

( 2 ) मौलिक अधिकारों की मान्यता - मंगलकारी अथवा कल्याणकारी राज्य का लक्षण है कि वह अपने सभी नागरिकों को जाति , धर्म , रंग आदि का भेद - भाव भुलाकर उनकी योग्यतानुसार पद प्रदान करता है और उनके मौलिक अधिकार को मान्यता प्रदान करता है। 

( 3 ) सांस्कृतिक विकास - लोककल्याणकारी राज्य अपने नागरिकों के मनोरंजन के साधनों को जुटाता है , उसी के लिये वह नागरिकों के सांस्कृतिक विकास की योजना भी बनाता है। 

( 4 ) सामान्य ज्ञान में वृद्धि - लोककल्याणकारी राज्य अपने नागरिकों की सुशिक्षा की व्यवस्था करता है । इस ध्येय की पूर्ति के लिये वह अनेक स्तरों पर विभिन्न प्रकार की शिक्षण संस्थाओं को खोलता है और नागरिक के प्रशिक्षण की व्यवस्था करता है। 

( 5 ) आर्थिक नियन्त्रण - लोककल्याणकारी राज्य का प्रमुख कार्य आर्थिक क्षेत्र में नियन्त्रण की स्थापना करना है । राज्य की ओर से उत्पादन की वस्तुओं की कीमतों पर नियन्त्रण किया जाता है । नाप - तोल , क्रय - विक्रय आदि के नियम बनाये जाते हैं । इस बात पर ध्यान दिया जाता है कि कोई भी व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का अनुचित प्रयोग न कर सके। 

( 6 ) सार्वजनिक शिक्षा - लोककल्याणकारी राज्य में राष्ट्र के बालक एवं बालिकाओं को निःशुल्क व वांछित शिक्षा दी जाती है और राज्य के वयस्क लोगों को साक्षर बनाने का प्रयत्न किया जाता है। 

( 7 ) कृषि के उत्थान का प्रयास - लोककल्याणकारी राज्य कृषि की उन्नति के लिये अच्छे बीज , सिंचाई के साधन , नये उपकरणों आदि की व्यवस्था करता है। 

( 8 ) यातायात के साधनों का विकास - राष्ट्रीय विकास के लिये यह आवश्यक हैं कि यातायात के साधनों का अधिक से अधिक विकास हो । इसलिये एक कल्याणकारी राज्य जनता की सुविधा के लिये रेलवे , सड़क , जल मार्ग अथवा वायु मार्ग की व्यवस्था करता है। 

( 9 ) सामाजिक कुरीतियों का अन्त - एक लोककल्याणकारी राज्य सामाजिक कुरीतियों को रोकने के लिये बाल - विवाह , मद्य - सेवन , छुआ - छूत आदि बुराइयों के विरुद्ध कानून बनाता है। 

( 10 ) अन्य समस्याओं का अन्त - एक लोककल्याणकारी राज्य उद्योग - धन्धों तथा महत्वपूर्ण नौकरियों का राष्ट्रीयकरण करता है। इसके अतिरिक्त बैंकों तथा बीमा कम्पनियों का राष्ट्रीयकरण करता है। वह बेरोजगारी , साम्प्रदायिकता आदि समस्याओं का भी अन्त करता है। 

राजनीतिक विज्ञान: लोकहितकारी राज्य राजनीतिक विज्ञान: लोकहितकारी राज्य Reviewed by Rajeev on जनवरी 27, 2023 Rating: 5

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