जार एलेक्जेण्डर द्वितीय के सुधारों की विवेचना

आधुनिक रूस के इतिहास में जार एलेक्जेण्डर द्वितीय को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है । रूस को आधुनिक एवं सम्पन्न बनाने की दिशा में पीटर महान् एवं कैथेराइन ने बहुमूल्य योगदान किया तथा यूरोप के मानचित्र पर रूस को एक प्रतिष्ठापूर्ण स्थान दिलाने में सफलता प्राप्त की । किन्तु रूस की प्रमुख समस्या , जो आन्तरिक पुनर्निर्माण की थी , की अवहेलना के कारण 19 वीं सदी के मध्य तक रूस एक पिछड़ा हुआ राष्ट्र बना रहा । 

जार एलेक्जेण्डर के सिंहासनारोहण के समय रूस की आन्तरिक दशा : जार एलेक्जेण्डर के सिंहासनारोहण के समय रूस की आन्तरिक व्यवस्था अत्यन्त खराब थी । इस समय किसानों की दासता रूस की सबसे बड़ी समस्या थी । रूसी समाज दो वर्गों में बँटा हुआ था - कुलीन और कृषक । कुलीन लोगों को अनेक प्रकार के विशेषाधिकार प्राप्त थे , लेकिन कृषकों की अवस्था अत्यन्त दयनीय थी । रूस में लगभग 4 करोड़ 95 लाख कृषक दास थे । कुलीन के अधीन रहने वाले दासों की हालत अत्यन्त खराब थी । उनके स्वामियों के अधिकार असीमित थे । परन्तु उन्हें किसी प्रकार का अधिकार प्राप्त नहीं था और उनके साथ बहुत अमानुषिक व्यवहार किया जाता था । रूस एक कृषिप्रधान देश था , किन्तु कृषि की दशा एकदम खराब थी । वाणिज्य , व्यवसाय एवं उद्योग - धन्धे भी पिछड़े हुए थे । रूसी समाज में अन्याय , बेईमानी और अनाचार व्याप्त था। 

राज्य में चारों ओर रिश्वतखोरी और प्रष्टाचार का बाजार गर्म था । जार का निरंकुशवाद अपनी चरम सीमा पर था । रूस जैसे विशाल देश में विभिन्न जाति , राष्ट्र एवं सम्प्रदाय के लोग निवास करते थे । किन्तु उन्हें परतंत्र की भाँति रूसी निरंकुशता में रहना पड़ता था । वे शासकों की रूसीकरण की नीति से अत्यन्त क्षुब्य थे । फ्रांस की राज्यक्रांति के पश्चात् वहाँ के विभिन्न जातियों में जागरण हुआ । रूसी लोग भी निरंकुशवाद से परेशान होकर देश में लोकतंत्र की स्थापना चाहते थे । जार एलेक्जेण्डर प्रथम जो प्रारम्भ में अत्यन्त उदारवादी था , ने शासन को उदार बनाया । किन्तु बाद में मेटरनिक के प्रभाव में पड़कर वह घोर प्रतिक्रियावादी हो गया । 

उदारवादियों ने निराश होकर गुप्त समितियों का गठन किया और क्रांति का प्रचार किया जार निकोलस प्रथम के शासनकाल में निरंकुशवाद और प्रतिक्रियावाद अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया था । अपने शासन के तीस वर्षों में उसने सभी उदारवादी प्रवृत्तियों पर प्रतिबन्ध लगाकर कठोर शासन स्थापित किया । किन्तु क्रीमिया युद्ध में रूस की पराजय ने निकोलस प्रथम के प्रतिक्रियावादी शासन की भ्रष्टता और अयोग्यता को बिल्कुल स्पष्ट कर दिया । उसके शासन की आलोचना होने लगी तथा चारों ओर सुधार की माँग बलवती होने लगी । इन्हीं परिस्थितियों में 1855 में जार निकोलस प्रथम की मृत्यु के पश्चात् जार एलेक्जेण्डर द्वितीय रूस की गद्दी पर बैठा । उसके सिंहासनारूढ़ होते ही रूस में सुधारों का युग प्रारम्भ हुआ । उसने अनुभव किया कि क्रीमिया युद्ध में रूस की पराजय और अपमान का एकमात्र कारण रूस की आन्तरिक अवस्था थी जो कुशासन का परिणाम था । अतः जार एलेक्जेण्डर द्वितीय ने सुधारों की व्यावहारिक आवश्यकता को महसूस किया।

गद्दी पर बैठते ही जार एलेक्जेण्डर द्वितीय ने सबसे प्रथम उदारवादी वातावरण तैयार किया । उसने राजनीतिक अपराधियों को क्षमा कर दिया तथा उन्हें कैद से रिहा कर दिया । निर्वासित व्यक्तियों को स्वेदश लौटने की अनुमति दे दी गयी । प्रेस , विदेश यात्रा एवं विश्वविद्यालय पर से लगे प्रतिबन्धों को समाप्त कर दिया गया । उसने पाश्चात्य एवं आधुनिक ढंग पर अपनी सेना का संगठन किया । उसके शासन का प्रथम दस वर्ष सुधारों का काल था । किया । 

कृषक दासों की मुक्ति : रूस की सबसे बड़ी समस्या दास प्रथा थी । राष्ट्रीयता के विकास के लिए इसका अन्त करना आवश्यक था । इस प्रथा का अत्यन्त बुरा प्रभाव रूस की सामाजिक , आर्थिक एवं सैनिक स्थिति पर पड़ रहा था । इसी प्रथा के कारण रूस यूरोप में हेय दृष्टि से देखा जाता था तथा उसे असभ्य समझा जाता था । यूरोप में इस प्रथा को समाप्त किया जा चुका था , किन्तु रूस में अभी भी साढ़े चार करोड़ दास विद्यमान थे जो शोषण के शिकार थे तथा उनकी स्थिति अत्यन्त दयनीय थी । उनमें असंतोष भड़क रहा था जिसके कारण उनके विद्रोह और गृह - युद्ध की आशंका हमेशा बन रहती थी । उन्होंने पूर्व में कई बार विद्रोह भी किया था । पेरिस के शांति सम्मेलन के पश्चात् जार ने इस समस्या की ओर ध्यान दिया और इस प्रथा को समाप्त करने की इच्छा प्रकट की । उसने सामन्तों के सामने कुछ निश्चित प्रस्ताव रखे और उनसे अनुरोध किया कि वे स्वेच्छा से दास प्रथा को समाप्त कर दें , अन्यथा " वे ( दास ) अपने आपको स्वयं मुक्त करा लेंगे । " तीन साल के अथक प्रयास के बाद 3 मार्च 1861 ई . को जार ने एक आदेश निकाला कि “ कृषक दास - प्रथा " समाप्त की जाती है । इस प्रकार साढ़े तीन करोड़ दासों की मुक्ति मिल गयी । इसी कारण जार एलेक्जेण्डर द्वितीय को “ मुक्तिदाता जार ” ( Czar the Liberator ) कहा जाता है । यह रूस के इतिहास की एक असाधारण घटना थी ।

नैतिक एवं आर्थिक दृष्टि से दासों की मुक्ति निःसंदेह एक महत्त्वपूर्ण घटना थी । कृषक दास स्वतंत्र हो गये तथा उन्हें नागरिक अधिकार प्रदान किये गये । कानून ने उनपर समाप्त कर दिया तथा उनका कोई अधिकार शेष न रहा । इन भी प्राप्त हुई । दासों की मुक्ति से यह आशंका थी कि रूस में वर्ग पैदा होगा और इससे आर्थिक विषमता तथा कठिनाइयों बढ़ेंगी । देश में बेरोजगारी बढ़ेगी तथा वे पूँजीपतियों के शोषण के शिकार होंगे । किन्तु इस समस्या का भी समाधान किया गया । स्वतंत्र किसानों को सामन्तों की भूमि का एक हिस्सा प्रदान किया गया । इसके लिए सामन्तों को कीमत दी गयी तथा यह पैसा किसानों से वार्षिक किश्तों में वसूलने की व्यवस्था की गयी । 

किसानों को चार सालों में यह किश्त पूरा करना था तथा उनसे 6 % ब्याज के रूप में वसूल किया गया । लेकिन चूँकि अभी किसानों के पास रकम नहीं थी इसलिए किसानों की ओर से सरकार ने यह रकम चुकायी और यह व्यवस्था की गयी कि सरकार किसानों के मालगुजारी से यह रकम वसूल करेगी । कृषक दासों की मुक्ति का नैतिक प्रभाव भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं था । जार ने स्वीकार किया कि इस घोषणा को स्वीकार कर रूस के सामन्तों और कुलीनों ने उदारता का परिचय दिया है । किन्तु कुछ कुलीनों ने इसका विरोध किया और कहा कि उनकी सम्पति का अपहरण किया गया है । किन्तु दासों की मुक्ति की घोषणा का यह सुखद परिणाम अवश्य हुआ कि सभी भूमिपति अपनी - अपनी जागीरों का प्रबन्ध करने लगे और अपव्यय को रोकने की चेष्टा करने लगे । 

इस प्रकार ऊपर से देखने पर दासों की मुक्ति की घोषणा एक क्रांतिकारी सुधार प्रतीत होता है , किन्तु वस्तुतः इससे कृषकों की आर्थिक स्थिति में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ । जमीन किसानों को व्यक्तिगत रूप से नहीं देकर सामूहिक रूप से मीर ( Mir ) अर्थात् ग्राम पंचायत को प्रदान की गयी । जमीन के बदले कृषकों से जो रकम वसूल की गयी उसकी कीमत बाजार दर से अधिक थी । किसानों पर कई प्रकार के नये टैक्स लगाये गये । भूमिकर के अतिरिक्त किसानों को वार्षिक किश्त भी देनी पड़ती थी इससे उनपर कर का बोझ काफी बढ़ गया । मीर जमीन की कीमत तथा लगान वसूल करते थे । अब सामन्तों तथा कुलीनों का स्थान मीरों ने ले लिया तथा उनके शोषण की सम्भावना " कृषक दासों की मुक्ति " की घोषणा रूस के इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण घटना बढ़ गयी । किन्तु इन आलोचनाओं के बावजूद यह एक निर्विवाद सत्य है कि " कृषक दासों की मुक्ति " की घोषणा रूस के इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी ।

प्रशासनिक सुधार : कर शासन को क्रीमिया युद्ध में रूस की पराजय ने स्पष्ट कर दिया कि रूस के आन्तरिक शासन में गम्भीर दोष हैं । अतः जार एलेक्जेण्डर द्वितीय ने इन दोषों को चुस्त - दुरुस्त करने का प्रयास किया तथा प्रशासन के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सुधारों को लागू किया । उसके सुधार दो सिद्धांतों - स्वायत्तता तथा विकेन्द्रीकरण पर आधारित थे । स्थानीय शासन को स्वायत्तता प्रदान की गयी तथा शासन का विकेन्द्रीकरण किया गया । प्रांतों को जिलों में विभक्त किया गया तथा प्रत्येक जिले में एक परिषद ( Zemtvos ) का गठन किया गया , जिसके सदस्यों का निर्वाचन जनता करती थी तथा जिसमें सभी वर्ग को प्रतिनिधित्व प्राप्त था । यह परिषद जजों का चयन , सड़क और पुलों की मरम्मत , स्वास्थ्य एवं सफाई का निरीक्षण , प्रारम्भिक शिक्षा का प्रबन्ध तथा अकाल रोकने हेतु आवश्यक कार्यवाही करती थी । किन्तु प्रान्तीय गवर्नरों को परिषद् के मामलों में विटो ( Veto ) लगाने का अधिकार प्राप्त था । इसके अतिरिक्त धन के अभाव में ये परिषदें अपने ढंग से कार्य नहीं कर पाती थीं । किन्तु जार ने राष्ट्रीय संसद के लिए सुधार नहीं किया तथा केन्द्रीय शासन पहले के समान स्वेच्छाचारी और अनुत्तरदायी बना रहा । 

न्याय के क्षेत्र में सुधार : न्याय तथा कानून के क्षेत्र में भी जार एलेक्जेण्डर ने उल्लेखनीय सुधार किये । रूस के कानून पुराने थे तथा न्याय - शासन में अनेक त्रुटियाँ थीं । जार ने इस क्षेत्र में जाँच तथा सुधार के लिए एक आयोग का गठन किया । इसने अपनी रिपोर्ट में न्याय - शासन में व्याप्त रिश्वतखोरी , बेईमानी तथा भ्रष्टाचार की ओर जार का ध्यान आकृष्ट किया । अतः जार ने इस रिपोर्ट के आधार पर न्याय शासन में महत्वपूर्ण सुधारों को लागू किया । उसने पाश्चात्य ढंग पर आधारित कानून तथा न्याय शासन को रूस में लागू किया । न्यायपालिका एवं कार्यपालिका को अलग - अलग कर दिया गया । रूस में जूरी - प्रथा को लागू किया गया । न्यायाधीशों को स्वतंत्रता दी गयी ताकि न्याय निष्पक्ष हो सके । अदालत की कार्यवाही को मुक्त एवं खुला बना दिया गया तथा कानून की नजर में सबको समान घोषित किया गया । नया दंड विधान लागू किया गया तथा दीवानी तथा फौजदारी मुकदमों की प्रक्रिया आसान बना दी गयी । अत्यधिक महत्त्व के मुकदमे बड़े न्यायाधीशों की अदालतों में पेश किये जाते थे जिनकी नियुक्ति स्वयं जार के द्वारा होती थी । अपेक्षाकृत छोटे मुकदमे , छोटी अदालतों ( Justices of the Peace ) में पेश किये जाते थे । किन्तु आलोचकों का कथन है कि न्याय के क्षेत्र में आर के द्वारा सम्पन्न ये सुधार कोई विशेष प्रभाव नहीं दिखा सके , क्योंकि उस समय रूस में योग्य एवं प्रशिक्षित न्यायाधीशों का अभाव था तथा जुरी के सदस्य अशिक्षित थे । किन्तु इन आलोचनाओं के बावजूद इतना तो स्वीकार करना पड़ेगा कि इन सुधारों से भ्रष्टाचार में कमी आयी तथा न्याय के प्रति आदर एवं गरिमा में वृद्धि हुई । 

शिक्षा के क्षेत्र में सुधार : जार एलेक्जेण्डर द्वितीय ने शिक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सुधारों को लागू किया । विश्वविद्यालयों पर से पुरानी पाबन्दियों को समाप्त कर दिया गया । माध्यमिक शिक्षण संस्थाओं में सुधार किया गया । स्कूलों में विज्ञान की शिक्षा के लिए विशेष सुविधाएँ प्रदान की गयीं । विज्ञान के क्षेत्र में विशेष प्रगति 1858 ई . में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला गया । इस प्रकार स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहित किया गया । 

सैनिक सुधार : 1874 ई . में सेना में सुधार के लिए उल्लेखनीय प्रयास किया गया । पूर्व में अर्द्ध कृषकों को सेना में भर्ती किया जाता था । उन्हें पच्चीस वर्षो तक सैनिक कार्य करना पड़ता था । इस प्रथा में अनेक बुराईयाँ थीं । अतः इस प्रथा को समाप्त कर जार एलेक्जेण्डर द्वितीय ने अनिवार्य सैनिक सेवा की घोषणा की । सेना को आधुनिक ढंग पर सुसज्जित किया गया तथा सैनिक अधिकारियों के प्रशिक्षण का स्तर ऊँचा किया गया । 

प्रभाव : उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि जार एलेक्जेण्डर द्वितीय ने महत्त्वपूर्ण सुधारों को लागू कर रूस को आधुनिक एवं शक्तिशाली बनाने का प्रयास किया । किन्तु उसकी उदारता और प्रगतिशीलता अधिक दिनों तक नहीं चल सकी । 1866 ई . के पश्चात् जार प्रतिक्रियावादी हो गया । इसके अनेक कारण थे । उसने आवश्यकता को अनुभव कर ही सुधारों को लागू किया था । किन्तु उसके सहालकार प्रतिक्रियावादी थे । उन्होंने धीरे - धीरे उस पर अपना प्रभाव स्थापित कर लिया । 1863 ई . के पोल विद्रोह के पश्चात् तो वह घोर प्रतिक्रियावादी हो गया । उसने पोलैण्ड में काफी सुधार किये थे और उनकी राष्ट्रीय आकांक्षाओं की पूर्ति करने का प्रयास किया था । किन्तु उसके सुधार पोल लोगों को संतुष्ट नहीं कर सके । वे रूसी साम्राज्य के बाहर एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना का प्रयास करने लगे । इसके लिए उन्होंने गुप्त क्रांतिकारी समितियों का गठन किया और विध्वंसक कार्रवाईयों में लग गये । 

1863 ई . में पोलैण्ड में विद्रोह हो गया । विद्रोह तो शीघ्र दबा दिया गया किन्तु जार ने अनुभव किया कि सुधार कार्यक्रमों के कारण उसकी निरंकुशता का अन्त हो गया । इसलिए इस विद्रोह के पश्चात् जार घोर प्रतिक्रियावादी हो गया । वस्तुत : जार के सुधार रूस के किसी भी वर्ग को संतुष्ट नहीं कर सके । किसानों में असंतोष व्याप्त था । कुलीन अप्रसन्न थे । केन्द्रीय शासन में कोई परिवर्त्तन नहीं हुआ । शिक्षित लोग और सुधार चाहते थे । परन्तु अब सुधार की अपेक्षा एलेक्जेण्डर द्वितीय के शासन में निरंकुशता आ गयी । उसने जनता के अधिकारों को सीमित करना प्रारम्भ किया । उनकी स्वतंत्रता पर पुनः प्रतिबंध लगा दिया गया । राजनीतिक कार्यक्रम समाप्त कर दिये तथा स्वायत्त शासन के अधिकारों को छीन लिया गया । इस प्रकार रूस पुनः प्रतिक्रियावाद का गढ़ बन गया ।

जार के प्रतिक्रियावादी शासन से उदारवादियों ने शून्यवादी ( Nibilism ) आन्दोलन चलाया । प्रारम्भ में यह आन्दोलन शांतिपूर्ण था , परन्तु बाद में निराश होकर इस आतंकवाद का रास्ता अपना लिया । इसकी आतंकवादी कार्यवाईयों में अनेक उच्च अधिकारी मारे गये । 1866 में और पुनः 1867 ई . में जार को जान से मारने का प्रयास किया गया । विवश होकर जार ने निहिलिस्टों से समझौता करने का प्रयास किया और 1881 ई . में नये सुधारों की योजना बनाने के लिए एक आज्ञापत्र जारी किया । किन्तु दुर्भाग्यवश उसी दिन 13 मार्च 1881 ई . को किसी निहिलिस्ट ने उस पर किया और जार एलेक्जेण्डर द्वितीय की मृत्यु हो गयी । उसकी मृत्यु के साथ ही सुधारों का युग समाप्त हो गया । नया जार एलेक्जेण्डर तृतीय घोर प्रतिक्रियावादी या उसने कठोरतापूर्वक शासन किया और सभी क्रांतिकारी गतिविधियों को क्रूरतापूर्वक कुचल दिया । इस प्रकार रूस में प्रतिक्रियावाद का घोर अन्धकार छा गया । 

जार एलेक्जेण्डर द्वितीय के सुधारों की विवेचना जार एलेक्जेण्डर द्वितीय के सुधारों की विवेचना Reviewed by Rajeev on जनवरी 29, 2023 Rating: 5

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