भारत का इतिहास: मराठों के उत्कर्ष के कारण

मराठा-शक्ति के उत्कर्ष के कारण - वस्तुत : अंग्रेजों ने भारत का साम्राज्य मुगलों से नहीं बल्कि मराठों से प्राप्त किया । तत्कालीन मुगल बादशाहों की शक्ति अत्यन्त दुर्बल एवं सीमित हो गयी थी तथा 18 वीं सदी में मराठे भारत की श्रेष्ठ शक्ति बन गये थे । इस कारण यह कहना अधिक उपयुक्त है कि भारत की राजसत्ता के लिए अंग्रेजों को वास्तव में हिन्दू - मराठों से संघर्ष करना पड़ा था। 

जी . एस . सरदेसाई के अनुसार- " मराठा शब्द की उत्पति राठा ( Rathas ) शब्द से हुई है । महाराष्ट्र में उनकी शक्ति का उदय हुआ । दक्षिण - पश्चिम भारत का भाग जो पश्चिम में अरब सागर से लेकर उत्तर में सतपुड़ा पर्वत तक फैला हुआ है और जिसमें आधुनिक बुम्बई का राज्य , कोंकण , खानदेश , बरार , मध्य - भारत का कुछ भाग और हैदराबाद राज्य का प्राय : एक - तिहाई भाग सम्मिलित है , मराठावाद के नाम से जाना जाता है । भारत के इसी भाग को महाराष्ट्र पुकारा गया है , जहाँ के निवासियों की मुख्य भाषा मराठी है । यहीं पर मराठा - शक्ति का उदय हुआ।" 

मराठा - शक्ति का उत्कर्ष किसी एक व्यक्ति अथवा विशेष व्यक्ति समूह का कार्य न था और न किसी विशेष समय में उत्पन्न हुई कुछ अस्थायी परिस्थतियों का ही परिणाम था । मराठा - शक्ति के उदा का आधार महाराष्ट्र के सम्पूर्ण निवासी थे जिन्होंने जाति , भाषा , धर्म और साहित्य और निवास स्थान की एकता के आधार पर राष्ट्रीयता की भावना को जन्म दिया और उस राष्ट्रीयता को संगठित करने के लिए एक स्वतंत्र राज्यश् की स्थापना की इच्छा की । मुसलमानों द्वारा भारत की विजय पूर्ण हो जाने के पश्चात् स्वतंत्र राज्य की स्थापना के लिए हिन्दुओं का यह प्रथम प्रयत्न या और यह प्रयत्न एक ऐसा राष्ट्रीय आन्दोलन बन गया  राजनीतिक दुर्बलता से लाभ उठाकर हिन्दू राष्ट्रीयता के निर्माण का ऐसा इतिहास है सम्पूर्ण महाराष्ट्र के निवासियों ने भाग लिया । हो वह शक्ति थी जिस आधार मराठा नेताओं ने भारत में हिन्दू पादशाही के निर्माण का स्वप्नर देखा और दिल् साराज्य को अपने हाथों में लेकर भारत को शक्तियों को एक शक्ति की अधीनता में ला का प्रयत्न किया तथा यही वह शक्ति थी जिसके बल पर मराठे बड़े से बड़े संकट की कर सके । मराठा - शक्ति के उत्कर्ष का इतिहास एक जन - समूह के उत्कर्ष का इतिहास है और एक ऐसे जागरण का इतिहास है जो सम्पूर्ण महाराष्ट्र की जनता में व्यक्त था। 

इस शक्ति के निर्माण और उत्कर्ष में विभिन्न परिस्थितियों ने भाग लिया- 

धार्मिक-क्रांति - मराठा शक्ति का उदय प्रमुख कारण धार्मिक क्रांति था । इस धार्मिक क्रांति का श्रेय किसी एक जाति या वर्ग को प्राप्त नहीं , बल्कि सम्पूर्ण जनता को प्राप्त हुआ यह सर्वविदित है कि राजनीतिक क्रांति का होना अनिवार्य है , क्योंकि इसे द्वारा समाज तथा धर्म के दोषों तथा उनके वाह्य आडम्बरों का विरोध किया जाता है तथा राजनैतिक संगठन में इसका बड़ा महत्व रहता है । मराठों में ' ज्ञानेश्वर ' , ' हेमाद्र ' तथा ' चक्रधर ' से लेकर ‘ तुकराम ' तक समस्त संतों ने इस भक्ति सिद्धांत को महत्व दिया तथा जाति भेद को सामाप्त करने का प्रयत्न किया था । इसके परिणाम स्वरूप मराठों में राष्ट्रीय चेतना का उदय हुआ। 

औरंगजेब की धार्मिक कट्टरता - असहिष्णुता की नीति औरंगजेब की धार्मिक कट्टरता की नीति के फलस्वरूप मराठों को अपना संगठन बनाने का अवसर प्राप्त हुआ था । वे अपने प्रदेश की रक्षा के लिये संगठित रूप से खड़े हुये औरंगजब की इसी नीति के कारण दक्षिण के मुसलमानी शिया राज्यों का भी अन्त हो गया था। 

दक्षिण की तत्कालीन दशा - दक्षिण के तत्कालीन राजनैतिक दशा ने भी मराठों का मनोबल बढ़ाया था । मुगलों के निरन्तर आक्रमणों के कारण अहमदनगर एवं बीजापुर आदि की दशा बहुत सोचनीय हो गई थी । बीदर व बरार के राज्यों का पहले से ही अन्त हो चुका था । गोलकुण्डा ने काफी समय तक धन देकर अनी रक्षा की , लेकिन औरंगजेब के कारण वह भी अन्तिम साँस लेने लगा था । पुर्तगालियों की दशा खराब थी और अंग्रेजी शासनकला का तो शैशवकाल ही था। 

महाराष्ट्र की भौगोलिक व प्राकृतिक दशा - महाराष्ट्र की भौगोलिक एवं प्राकृतिक सीमाओं ने भी मराठों के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी , क्योंकि मराठा प्रदेश , विंध्याचल पर्वत तथा सतपुरा की श्रृंखलाओं तथा नर्मदा एवं ताप्ती नदियों से उत्तर तथा मध्य भारत की ओर से स्थित है तथा उसके पश्चिम ककी ओर अरब सागर और पश्चिम घाट की ओर पहाड़ियों से घिरा है । अतः कोई भी सेना वहाँ पर विदेश आकर अधिकार करने में सफल नहीं हो सकती। 

हिन्दूओं की भूमिका - अनेक मुसलमान शासकों के प्रयत्न के बावजूद भी दक्षिणी प्रदेशों पर मुसलमानी सम्यता और संस्कृति का उतना अधिक प्रभाव नहीं हो पाया था जितना कि उत्तर भारत के प्रदेशों पर हुआ था । यद्यपि दक्षिण में बहमनी राज्य की स्थापना हुई थी । परन्तु उस राज्य पर हिन्दुओं का ही विजय प्रभाव था । इसके शासकों को अपनी रक्षा हेतु हिन्दुओं पर निर्भर रहना पड़ता था । उन मुसलमानों का भी इन शासकों पर प्रभाव था , जिन्होंने किसी विशेष कारण यह इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था। इन राज्यों में मराठों का विशिष्ट स्थान था । मुरारी राय , राज राय तथा मदन पंडित सरीखे परिवारों के सदस्य गोलकुण्डा राज्य में दीवान के पद पर कार्य करते थे । कुछ मराठे अपनी राजनीतिक तथा कूटनीति का कुशलता के आधार पर राजदूतों के पद पर भी नियुक्त थे। 

स्थानीय संस्थायें - मराठों के उत्थान में महाराष्ट्र की स्थानीय - संस्थाओं में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी । गाँव की पंचायतें छोटे - छोटे मामलों का निर्णय स्वयं करती थी । इस प्रकार स्वायत प्रशासन की प्रथम इकाई की अध्यक्षता में मराठा निवासी सदैव स्वतंत्रता प्रेमी रहे थे तथा अब उन्होंने स्वतंत्रता की रक्षा के लिये अपने प्राण तक देने का संकल्प लिया। 

राष्ट्रीय भाषा - एक ही राष्ट्र भाषा से आतीयता की भावना तथा राष्ट्रयता की भावना को बली मिलता है । इसी प्रकार मराठी भाषा एवं साहित्य ने भी मराठों को संगठित करने में तथा उनकी एकता के सूत्र में बांधने में बहुत योग दिया। 

शिवाजी का व्यक्तित्व - मराठों ने शिवाजी के नेतृत्व में विशेष उन्नति की और उन्हीं की प्रेरणा से वे शक्तिशाली मुगल सम्राट औरंगजेब का भी सामना करने के लिये तैयार हो गये। 

उपरोक्त विवरण के आधार पर कहा जा सकता है कि उस समय की राजनीतिक , सामाजिक व धार्मिक अनुकूल परिस्थितियों ने मराठों के उत्कर्ष में योग दिया था। 

भारत का इतिहास: मराठों के उत्कर्ष के कारण भारत का इतिहास: मराठों के उत्कर्ष के कारण Reviewed by Rajeev on जनवरी 29, 2023 Rating: 5

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